Friday, January 27, 2012

तेरे मेरे बीच...

इक चिंगारी
शायद बरसों से दबी हुई आग से उठी
सही और गलत के धुंए को चीरती

कभी हाथ ना आने वाला धुआं
ज्यादा नज़दीक जाने पर जो जला देगा
मुट्ठी में घर नहीं है जिसका

होंठों से बस महसूस होता है जो
मोहताज नहीं जो रिश्ते का
क्योंकि जल के खाख ही होना है उसे

और फिर से जल जाना
और बस यूँ ही
बार बार जलना

जो भडकता है बार बार
पर वजूद की नहीं उसे ज़रूरत
हवा सा बेलगाम

छुओ तो आराम
बोलो तो बदनाम
दुनिया में अनजान
तेरी मेरी पहचान

ऐसा है ये
जो है हमारे बीच

नाम इसका जानते हैं बस
मैं
और तू

ऐसा है ये
जो है नींद सा मीठा
और गम सा गहरा

यही तो है बस
जो भी है ये

तेरे मेरे बीच
जिसे छूते हैं बस
मैं
और तू...

-घुमंतू पंछी

2 comments:

  1. mene kabhi tumhe hindi me likhate hue nahi dekha.. probably kabhi moka nahi mila.. but.. it is gud to read some thing frm u r side... after a very long time.. aur shayad aap to hume bhul gaye honge... chaliye sharma ji.. spend nice time on ur blog...

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  2. anonymous se comment post karoge to pata kaise chalega ki main kise bhool gaya hoon! drop a message in my facebook/gmail inbox. Kindly... :)
    And thanks for the comment... :)

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