Wednesday, January 25, 2012

धुंए से दोस्ताना है मेरा...

जाने क्यूँ खुला आसमान झूठा सा लगता है
जाने क्यूँ हर सीधी सड़क गलत रास्ता लगती है
जाने क्यूँ कोई सुलझी बात घर नहीं करती मन में

शायद कुरेदना जिंदगी को
शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा..

नज़र नहीं आती शरीफों में शराफत,
पर घुमक्कडों में ठिकाने ढूंढ लेता हूँ

जाने कैसे लोगों में आना जाना है मेरा,
खिड़कियों से दोस्ती,
दरवाजों से रिश्ता पराया है मेरा.

शायद कुरेदना जिंदगी को,
इक शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा...

-घुमंतू पंछी

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