इक चिंगारी
शायद बरसों से दबी हुई आग से उठी
सही और गलत के धुंए को चीरती
कभी हाथ ना आने वाला धुआं
ज्यादा नज़दीक जाने पर जो जला देगा
मुट्ठी में घर नहीं है जिसका
होंठों से बस महसूस होता है जो
मोहताज नहीं जो रिश्ते का
क्योंकि जल के खाख ही होना है उसे
और फिर से जल जाना
और बस यूँ ही
बार बार जलना
जो भडकता है बार बार
पर वजूद की नहीं उसे ज़रूरत
हवा सा बेलगाम
छुओ तो आराम
बोलो तो बदनाम
दुनिया में अनजान
तेरी मेरी पहचान
ऐसा है ये
जो है हमारे बीच
नाम इसका जानते हैं बस
मैं
और तू
ऐसा है ये
जो है नींद सा मीठा
और गम सा गहरा
यही तो है बस
जो भी है ये
तेरे मेरे बीच
जिसे छूते हैं बस
मैं
और तू...
-घुमंतू पंछी
Friday, January 27, 2012
Wednesday, January 25, 2012
चमड़ी की चाह, प्यार का ढोंग!
स्पर्श के मोहताज हम तुम,
चमड़ी को चाहने वाले..
सुरंग तक की बस चाहें दौड,
या मांगे बांस की मार...
बीस मिनट का नाच,
फिर दस मिनट का जश्न.
दो पल का जादू,
फिर सुकून की लंबी सांस.
इसी मोह में,
सारे पहर,
दिन, दोपहर, शाम...
नस फाड़, कमर तोड़, छाती चीर,
खींचना है किसी तरह, कामना के कुए से,
सबको वही जाम.
बाज़ार से हो या व्यहवार से,
सोना चाहें बस किसी के साथ...
सारी दौड़, सारा पसीना,
आशिक और हसीना,
सब बिस्तर के नाम.
पर बोर्ड लटका है प्यार का,
सबके कमरों में,
अपने यार के नाम!
निकल आओ नकाबों से,
अश्लील कहलाती किताबों से,
उठा लो सत्य की ठेकेदारी,
समाज के ठेकेदारों के नाम!
शरीर जो कहता है
उसे भी पाक समझो
कम से कम अकेलेपन में,
खुद को बेनकाब समझो..
कम से कम अकेलेपन में,
खुद को बेनकाब समझो...
- घुमंतू पंछी
चमड़ी को चाहने वाले..
सुरंग तक की बस चाहें दौड,
या मांगे बांस की मार...
बीस मिनट का नाच,
फिर दस मिनट का जश्न.
दो पल का जादू,
फिर सुकून की लंबी सांस.
इसी मोह में,
सारे पहर,
दिन, दोपहर, शाम...
नस फाड़, कमर तोड़, छाती चीर,
खींचना है किसी तरह, कामना के कुए से,
सबको वही जाम.
बाज़ार से हो या व्यहवार से,
सोना चाहें बस किसी के साथ...
सारी दौड़, सारा पसीना,
आशिक और हसीना,
सब बिस्तर के नाम.
पर बोर्ड लटका है प्यार का,
सबके कमरों में,
अपने यार के नाम!
निकल आओ नकाबों से,
अश्लील कहलाती किताबों से,
उठा लो सत्य की ठेकेदारी,
समाज के ठेकेदारों के नाम!
शरीर जो कहता है
उसे भी पाक समझो
कम से कम अकेलेपन में,
खुद को बेनकाब समझो..
कम से कम अकेलेपन में,
खुद को बेनकाब समझो...
- घुमंतू पंछी
धुंए से दोस्ताना है मेरा...
जाने क्यूँ खुला आसमान झूठा सा लगता है
जाने क्यूँ हर सीधी सड़क गलत रास्ता लगती है
जाने क्यूँ कोई सुलझी बात घर नहीं करती मन में
शायद कुरेदना जिंदगी को
शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा..
नज़र नहीं आती शरीफों में शराफत,
पर घुमक्कडों में ठिकाने ढूंढ लेता हूँ
जाने कैसे लोगों में आना जाना है मेरा,
खिड़कियों से दोस्ती,
दरवाजों से रिश्ता पराया है मेरा.
शायद कुरेदना जिंदगी को,
इक शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा...
-घुमंतू पंछी
जाने क्यूँ हर सीधी सड़क गलत रास्ता लगती है
जाने क्यूँ कोई सुलझी बात घर नहीं करती मन में
शायद कुरेदना जिंदगी को
शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा..
नज़र नहीं आती शरीफों में शराफत,
पर घुमक्कडों में ठिकाने ढूंढ लेता हूँ
जाने कैसे लोगों में आना जाना है मेरा,
खिड़कियों से दोस्ती,
दरवाजों से रिश्ता पराया है मेरा.
शायद कुरेदना जिंदगी को,
इक शौक पुराना है मेरा
जवाब जहाँ छुपे बैठे हैं,
उस धुंए से दोस्ताना है मेरा...
-घुमंतू पंछी
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